हरी ओढ़नी ओढ़े
मन सफेद कर बुढ़िया माई
गुड़िया ले लो बोले.......
रंग बिरंगी हर इक गुड़िया,है बिल्कुल अनमोल
कम ही दाम लगाए मैने,आओ ले लो मोल
चूल्हा जला छोड़ कर आई हूं, सुन लो तुम क्रेता
मजबूरी में बेचूं गुड़िया, बन कर मैं विक्रेता
जाने आज बिकेगी कोई या फिर कहना होगा
बिटिया मैं फिर नहीं ला सकी
तेरी खातिर होले
मन सफेद कर बुढ़िया माई
गुड़िया ले लो बोले.......
जब भी गुड़िया नई बनाई, बिटिया ने शृंगार किया,
भिन्न भिन्न रूपों में ढाला सुंदर सुंदर नाम दिया,
एक को बड़ी बहन कहती है, एक को छुटकी कहती है
मेरी बिटिया की मुस्काने इन गुड़ियों में रहती है
जल्दी जल्दी बेच इन्हें घर मुझको जाना होगा
घर पर मेरी गुड़िया
बैठी है दरवाज़ा खोले
मन सफेद कर बुढ़िया माई
गुड़िया ले लो बोले.......
जान रही हूं इन्हें बेच,तन ही जिंदा रख पाऊंगी
मन से टूटेगी गुड़िया, जब गुड़िया बिन घर जाऊंगी
रो रो कर पूछेगी मुझसे कहां गई है मीना दीदी
और कहां तुम छोड़ आई हो, मेरी प्यारी सोना सीधी
उत्तर नहीं पास है मेरे क्या उसको बतलाऊंगी
लेकर बैठी है बिटिया
प्रश्नों से भर कर झोले
मन सफेद कर बुढ़िया माई
गुड़िया ले लो बोले.......