मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

मंगलवार, 7 जनवरी 2020

गीत:- उतनी बड़ी व्यथाएँ होंगी



जितनी बड़ी कथाएं होंगी 
उतनी बड़ी व्यथाएं होंगी।

राम राम तब बन पाए जब
मात पिता घर उपवन त्यागे
कृष्ण कृष्ण तब कहलाये जब
छोड़ राज पद हृदय विराजे
ऊँचे शिखरों की भी अपनी
कुछ अनकही सजाएं होंगी,

जितनी बड़ी कथाएं होंगी 
उतनी बड़ी व्यथाएं होंगी।

मिला सभी कुछ जिसे उसे भी
खाली हाथ विदा होना है
और रहे जो हाथ रिक्त 
उन हाथों को जीवन ढोना है
भिन्न अगर है भाग्य सभी के
निश्चित अलग तथायें होंगी

जितनी बड़ी कथाएं होंगी 
उतनी बड़ी व्यथाएं होंगी।

वेदनाएँ जब प्रबल हुई तो
खुद ने खुद को स्वयं संभाला
हर कठिनाई से खुद जूझे
उलझन से भी स्वयं निकाला
अपनी धुन में रहने वालों की
अपनी गाथाएँ होंगी

जितनी बड़ी कथाएं होंगी 
उतनी बड़ी व्यथाएं होंगी।

नई राह पर जो चलते हैं 
वही क्रांति के दिव्य जनक हैं
तप कर कुंदन जो बनते हैं
वही सत्य में सिद्ध कनक हैं
हर नव पथ को चुनने वालों 
की कुछ नई प्रथाएँ होंगी

जितनी बड़ी कथाएं होंगी 
उतनी बड़ी व्यथाएं होंगी।








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