चाहते हैं हम अधर सज जाएं,
दुनिया गुनगुनाये|
शब्द हम लिखते नहीं है ,
भाव का पर्याय हैं हम
वेदना जिसमें भरी वो,
प्रश्न एक निरुपाय हैं हम
डाल कर अपनी व्यथाएं
और के हिस्से भला फिर
क्या करेंगे हम किसी की
ज़िंदगी का दंश बन कर
बस यही एक चाह बन कर पुष्प,
राहों को सजाएं
चाहते हैं हम अधर सज जाएं,
दुनिया गुनगुनाये|
हम नहीं शब्दों का
माया जाल बनना चाहते हैं
हम सदा एक गीत बन कर
प्रिय ढलना चाहते हैं
चाहते हैं हों सरल इतने
कि कोई भी समझ ले
और आएं हम जहाँ भी,
आएं ना हम भ्रंश बन कर
जब बजे हम हर व्यथित मन
खिलखिलाए मुस्कुराए
चाहते हैं हम अधर सज जाएं,
दुनिया गुनगुनाये|
बह रहा लावा हृदय में
तप रहा है जिस्म सारा
पर नदी बन कर बहे हैं
थाम हम अपना किनारा
तुम कहो तट तोड़ कर
हम क्यों बने जल प्रलय जैसे
क्या करेंगे हम भला एक
भीषिका के वंश बन कर
चाहते हैं बन भागीरथ
हम सभी को तार जाएं
चाहते हैं हम अधर सज जाएं,
दुनिया गुनगुनाये|

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जवाब देंहटाएंवाह वाह
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