मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

गज़ल

 1।

बेवफा वो क्या समझ पायेगा मेरे हाल को 

जिसने डाला था, पकड़ने मछलियाँ फिर, जाल को |

2।

खत्म हो जाता है सारा वक़्त ही बेकार जब

तब पलट कर  देखता है जग बिताए साल को।

3।

जब तलक ज़िंदा था उसकी एक ना जग ने सुनी

मर गया तो अब निकालें , बाल की वो खाल को।

4।

उसने मेरे गर्मी ए एहसास को कह बेवफा

काट डाला जिसपे बैठा था स्वयं उस डाल को।

5।

लूटने वाले ने मुझको आज फिर आवाज़ दी

पर मैं अब  पहचानता था भेड़िए की चाल को।

6।

जब दिखे उसको गलत परिणाम अपने प्यार के 

हो गयी फिर चुप स्वधा ले मौन की उस ढाल को।

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