कोई नहीं है अब ठिकाना
आज आना और कल वापस
वहीं पर लौट जाना।
सागरों से मांग कर
बादल उधारी चल पड़ा था
रास्ते में पर्वतों से जान करके
वो लड़ा था
बूंद बन बंजर धरा को
सींचता था
सृष्टि का हर अंश जल से भीगता था
किंतु पोखर की है नियति में
रिक्त होना, लबलबाना।
आज आना और कल वापस
वहीं पर लौट जाना।
जो जना है एक दिन उसको
नियति ये मांग लेगी
जीवनी रेखा , करम और भाग्य
सबको टांग लेगी
और फिर अंतिम क्षणों में
सिर्फ खुद से बात होगी
क्या सही था क्या गलत था
बात ये संग गात होगी
देह के आने से पहले
तय हुआ है उसका जाना
आज आना और कल वापस
वहीं पर लौट जाना।
अंश को एक रोज़
परमानंद में मिलना पड़ेगा
फिर प्रकृति के पुष्प को
लेकर पुरुष खिलना पड़ेगा
लोग जाते वक्त रो रो कर
विदा उसको करेंगे
और धारे नव कलेवर
आएगा स्वागत करेंगे
चक्र है जिसका निरन्तर
तय हुआ है चलते जाना
मानवों के भाग्य का
कोई नहीं है अब ठिकाना
आज आना और कल वापस
वहीं पर लौट जाना।

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