मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

गुरुवार, 19 जून 2025

नश्तरों की क्या ज़रूरत



 नश्तरों की क्या ज़रूरत जिनकी तगड़ी धार धार

आँख ही कर देती है कपड़े बदन के तार तार।।


ग़ैर के आगोश में जा कर मिलेगा क्या हमें
अब तो अपने ही लगाते ब्लेम हम पर बार बार।।

दौड़ में तो जीत जाते हम, भरोसा था हमें
भीड़ से अपनों ने चिल्लाया ओ धावक हार हार।।

जिनसे सच की थी उम्मीदें, झूठ वो कहते रहे
शर्म इतनी आई ख़ुद पर फ़िर हुए हम ज़ार ज़ार।।

अपनी थाली के निवाले में नमक कुछ कम लगा
दोस्त की थाली जो देखी मुँह में आई लार लार।।

खुशबुओं में मत उलझ तू, हैं कृत्रिम सब खुशबुएं
माँ ने बतलाया वही है शुद्ध जिसमें झार झार।।

क्या करेंगे अब बताओ हम भला इस देश का
उल्लुओं का आज डेरा हैं जहाँ पर डार डार।।

जब स्वधा ने कह दिया बस इश्क़ है मजहब मेरा
भीड़ ले तलवार बोली अब स्वधा को मार मार।।




स्वधा रविंद्र उत्कर्षिता

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