मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

गीतिका:- रेल की पटरी पे ज़िंदगी



दो समांतर पटरियों पर 
चल रही है जिंदगी
नित नई राहों पे देखो 
ढल रही है जिंदगी।

भूख से तड़पी कहीं तो 
प्यास से बोझिल हुयी
रोज़ पारे की तरह से 
गल रही है जिंदगी।

दोस्तों ने साथ छोड़ा , 
छोड़ कर दुश्मन हुए
बस इसी कारण मुझे अब 
खल रही है जिंदगी।

अनुभवों से सीख कर भी ,
कुछ न हासिल कर सके
देख कर अपनों की फितरत 
जल रही है जिंदगी

रेल की पटरी सी उलझी , 
भिन्न राहों की ललक में
आज खुद को खुद ही देखो 
छल रही है जिंदगी।

दो समांतर पटरियों पर 
चल रही है जिंदगी
नित नई राहों पे देखो 
ढल रही है जिंदगी।

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