मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

सोमवार, 16 दिसंबर 2019

गीत:- श्याम नहीं घर आये हैं

मेरे कान्हा के लिए



अखियाँ मेरी कैसे सोएं
श्याम नहीं घर आये हैं
माखन के छीकें ना टूटे
गैया भी रंभाये है।

उसे नहीं है भान ज़रा सा
उसके बिन सब सूना है
रात्रि अभावों वाली है और
मन विस्मित हो घूमा है
अंतर मन है दुखी बहुत
अँखियों में बादल छाए हैं

अखियाँ मेरी कैसे सोएं
श्याम नहीं घर आये हैं।

आंगन मौन पड़ा है मेरा 
ढूंढे है तुझको कण कण
हाथ हाथ है खोजे तेरा
मन को है बस एक लगन
कान्हा तेरे लिए यशोदा 
का मन तरसा जाए है

अखियाँ मेरी कैसे सोएं
श्याम नहीं घर आये हैं।

जाने कैसी प्रीत कि तुम बिन
भूख प्यास सब हर जाती
तुझको किसी गोद मे देखूँ
जीते जी मैं मर जाती
तुम हो तो सब कुछ सुंदर है
तुम बिन मन अकुलाए है

अखियाँ मेरी कैसे सोएं
श्याम नहीं घर आये हैं।

सूख गए अब नयन माई के
ढूँढत ढूँढत पैर थके
जाने कौन गली में जाके
जसुदा के नंदलाल बसे
प्राण छोड़ कर देह, ढूंढने 
अपने हरि को जाए है,

अखियाँ मेरी कैसे सोएं
श्याम नहीं घर आये हैं।





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