गीत
केश खोले ,दानवों पर छा गयी है शारदा फिर
बनके चंडी इस जगत पर छा गयी है शारदा फिर ।
हाथ मे तलवार का संधान धारे वो खड़ी है
क्रोध में है कपकपाती आसमा पे वो चढ़ी है
रुद्र का नव रूप धारे , आज तांडव कर रही है
जब लली माँ शारदा की , आज बलि पर चढ़ रही है
धार काला वेष फिर से शेष की फुंकार लेकर
वेग धारे आंधियों का , आ गयी है शारदा फिर
केश खोले ,दानवों पर छा गयी है शारदा फिर
बनके चंडी इस जगत पर छा गयी है शारदा फिर ।
केश में विषधर बसाए और नयन में उग्र ज्वाला
हाथ में ले तीव्रता घर घर से निकली आज बाला
धार कर ये रूप वध, हर दुष्टता का कर रही है
है व्यथित यह देख कर , किस तरह कन्या मर रही है
नोचते हैं ये दुशासन चीर अबला का कहीं जब
काट कर नरमुंड तब तब , भा गयी है शारदा फिर
केश खोले ,दानवों पर छा गयी है शारदा फिर
बनके चंडी इस जगत पर छा गयी है शारदा फिर ।
निर्भया निर्भय हुई है आसिफा भी तन गयी है
आज सारी देवियाँ रणचंडियों सी बन गयी है
कर दिया मर्दन महिष का गर्व से इतरा रही है
भेद कर दुर्भाग्य को, सौभाग्य ध्वज फहरा रही हैं
आज फिर से उज्ज्वला सौदामिनी बन कर जगी जब
तब सुखद स्वर रागिनी ले , गा गयी है शारदा फिर
केश खोले ,दानवों पर छा गयी है शारदा फिर
बनके चंडी इस जगत पर छा गयी है शारदा फिर ।

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