मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

गीत:- प्रेम नगर की प्रेम गली


गीत


प्रेम नगर की प्रेम गली में
घूम घूम नित आना
तेरे संग मैं चाहूँ प्रियतम 
दुनिया मे इतराना

कहीं जाऊं और कहीं रहूँ 
पर तुझसे मोह लगाना
एक यही है रीत हमारी 
तुझ पर जीना और मर जाना
धड़कन सुर लय ताल स्वांस
सब तेरे नाम किये है
हे गोपाला हम तो केवल
तेरे लिये जिये हैं
राधा बन कर चैन ना पाया
मीरा बन तुझे लुभाना

तेरे संग मैं चाहूँ प्रियतम 
दुनिया मे इतराना।

मन मे कितने प्रश्न पड़े हैं
तेरे बिन निष्तेज खड़े है
सम्पुट पट पर मौन सजे हैं
हमने सब श्रृंगार तजे हैं
जीवन मे दिनकर ना निकला
पैर बिना पानी ही फिसला
मृग मरीचिका में अटके हैं
बिन तेरे कितना भटके हैं
अब मन ने सब त्याग किया
बस सीखा सकुचाना

तेरे संग मैं चाहूँ प्रियतम 
दुनिया मे इतराना।

जोगी तुझको मान 
बनी जोगन मैं पीछे आई
बिन तेरे वनमाली 
मन की कली मेरे मुरझाई
प्रकृति पुरुष को ढूंढ ढूंढ कर
थक अब हार गई है
नीरवता इस बार मुझे 
अंदर तक मार गयी है
अंतिम पल बस यही प्रतीक्षा
तुझमे है मिल जाना

तेरे संग मैं चाहूँ प्रियतम 
दुनिया मे इतराना।

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