मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

सोमवार, 7 जून 2021

हमें आकर सुलाओ


नींद आंखों में नहीं है , आओ लोरी गुनगुनाओ

व्योम से तारों उतर आओ हमें आकर सुलाओ।


डाल के हर घोंसले में आज फैली है निराशा

हो गयी आशाएं बंजर, छा गया जैसे कुहासा

कष्टकारी हो गए दिन, रात्रि बेकल हो रही है

मृत्यु फैली है चतुर्दिश, सृष्टि सारी रो रही है

आओ अब हे देव आशा का नवल दीपक जलाओ


व्योम से तारों उतर आओ हमें आकर सुलाओ।


स्वप्न में भी कालिमा आ कर मुझे है अब डराती

स्वांस की लय तोड़ देती ताल धड़कन की मिटाती

ओज के स्वर , कांति अपनी त्याग कर बनते रुदाली

दूर हों विपदायें बस इस हेतु बजती आज थाली

पूर्व की तरह धमक पर तश्तरी सोहर सुनाओ


व्योम से तारों उतर आओ हमें आकर सुलाओ।


इस विफलता की घड़ी में किस तरह हों बंद पलकें

देख कर जलती चिताएं अश्रु भी अविराम छलकें

काल से अब नित्य ही हम चार आँखें कर रहे हैं

अब निलय ,आलिंद मन के रोज़ ही तो मर रहे हैं

आओ फिर विकराल अपना रूप धर गीता सुनाओ


व्योम से तारों उतर आओ हमें आकर सुलाओ।

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