मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

ये तो है बस तेरी हार

 

तुम हो अपने राज महल में

मैं हूँ नदिया के उस पार

प्रियतम मेरी हार नहीं ये

ये तो है बस तेरी हार।।


कलयुग में भी मिला तुम्हें एक सत्य बोलने वाला साथी

त्रेता वाली भावनाओं में लिपटी सीता जैसी साथी 

द्वापर वाला प्रेम परोसे राधा भी किस्मत में आई

लेकिन देखो भाग्य तुम्हारा, तुमको रास नहीं वो आई

अब ढूंढो तुम सगरे जग में जाओ सच्चा वाला प्यार


प्रियतम मेरी हार नहीं ये

ये तो है बस तेरी हार।।


बहुत पुकारा था मैंने पर तुम तक मन की बात न पहुँची

रातें रो रो काटीं थी जो, तुम तक वो हर रात न पहुँची

तुम सोये जब शैय्या पर तब, मैं बस करवट बदल रही थी

तुम हँसते जब मित्रों के संग, मैं जोगन बन टहल रही थी

हिचकी अब आ अटकायेगी ग्रीवा में खाया आहार


प्रियतम मेरी हार नहीं ये

ये तो है बस तेरी हार।।


जाओ विदा तुम्हें करते हैं, जहाँ रहो सुख से रहना

पर तुम अपनी बातों के हो पक्के , ये अब ना कहना

किसी अन्य के संग भावनाओं के रिश्ते यदि रखना

है अनुरोध निभाना , उसको बीच राह पर मत तजना

वरना प्यार सदा के लिए कहा जायेगा बस व्यभिचार


प्रियतम मेरी हार नहीं ये

ये तो है बस तेरी हार।।









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