मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

सोमवार, 12 सितंबर 2022

वो तो केवल एक साहूकार निकला




जिसको पंडित प्यार का माना कभी था

वो तो केवल एक साहूकार निकला

झूठ थी बातें सभी उस सत्यव्रत की

झूठ उसका प्यार और व्यहवार निकला । 


था कभी देखा जहाँ पर एक जोगी

उस हृदय में एक रोगी बस रहा था

नित्य संशय के नवल कुछ बीज लाकर 

वो स्वयं अंतस में बरबस बो रहा था

जो बताता प्रेम को आधार अपना

आज झूठा उसका हर आधार निकला


जिसको पंडित प्यार का माना कभी था

वो तो केवल एक साहूकार निकला।। 


ढूँढता था कथ्य के पर्याय सारे 

किंतु जो भाये उसे वह मानता था

दीप जिसको मान कर हमने चुना था

वो तिमिर में ख़ुद उजाला छानता था

जिसको तट हम मानकर चलने लगे थे

वो स्वयं ही कर्म से मंझधार निकला


जिसको पंडित प्यार का माना कभी था

वो तो केवल एक साहूकार निकला।। 


आस्तीनों में बसे सर्पों की ख़ातिर

उसने घर की एक मैना को रुलाया

जो उसी के हित में पढ़ते थे दुआएँ

वो वही कर, आज फिर से काट आया

जिसको अमृत मान कर हम पी रहे थे

वो गरल की तप्त अविरल धार निकला 


जिसको पंडित प्यार का माना कभी था

वो तो केवल एक साहूकार निकला।। 




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