उर्दू अदब के कायदे कानून जानकर
हम क्या करेंगे गीतों को ग़ज़लों में ढाल कर।।
अब तक नहीं है याद हमें अपनी इबारत,
फिर क्या मिलेगा लाम मीम को संभाल कर।।
जो मेरा था नहीं, कभी भी, उसके हक में हम
अब क्या करेंगे आँख में कुछ सपने पाल कर।।
जिसको नहीं है इल्म ज़रा सा भी त्याग का
हम क्यों बढ़ेगें उसकी तरफ दूजा गाल कर।।
मिट्टी हैं एक रोज़ फ़िर से होना है मिट्टी
कूज़े पे जो चढ़े तो वो रख दे गा ढाल कर।
जिसको भी बताओगे अपने दर्द ओ गम कभी
ये तय है कि जायेगा लौट गोलमाल कर।।
हमने स्वधा को अपने ही भीतर छिपा लिया
अब कोई भी तोड़ेगा फ़िर इस्तमाल कर ।।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी अनमोल प्रतिक्रियाएं