मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

सोमवार, 29 अगस्त 2022

सोई और आराम किया




उसने मुझको छोड़ दिया तो मैंने भी ये काम किया

उसको ताक पे रखा मैंने, सोई और आराम किया।। 


लोगों ने मंदिर में जाकर धूप दीप वंदना करी

मैंने अपने मन को मंदिर तन को अक्षरधाम किया।। 


दुनियादारी वाली गठरी लदी पीठ पर बरसों से

मैंने उसको लादे लादे खुद से नित संग्राम किया।। 


अय्यारों के बीच रही पर कोई फरेब न छू पाया, 

मैंने सच की जोत थाम कर, अपना हर इमाम किया।। 


महफ़िल में रह कर भी ख़ुद को ख़ुद में बाँधे रखा सदा, 

इस तरह से मैंने ख़ुद को देखो आत्माराम किया।। 


जिसने भी गाली दी उसको उसी समय माफ़ी देकर

अपने हिस्से शांति बटोरी राम राम बस राम किया।। 


मुझसे अपनों को यूँ करके रही शिकायत मन भर की

बिना किये, गलती मानी और मैंने युद्ध विराम किया।। 


लोग लड़ रहे थे संज्ञा बनने की ख़ातिर इस जग में

मैंने ख़ुद को हम कहकर संज्ञा की जगह सर्वनाम किया।। 


स्वधा चैन से सो पाती है इसका बस एक कारण है

अपनों की खुशियों को उसने कभी नहीं नीलाम किया।। 



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी अनमोल प्रतिक्रियाएं