Hindi poetry and Hindi sahitya Hindi Literature
प्रेम चुंबक नहीं है प्रिये, एक उन्मुक्त आकाश है,
जिसमें कोई भी चिंता न हो प्रेम कुछ ऐसा अवकाश है
जिसमें कितनी भी पीड़ा मिले किंतु मन मुस्कुराता रहे
प्रेम सबको छकाता फिरे ऐसा मीठा सा बदमाश☺ है।।
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