मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

मंगलवार, 2 अगस्त 2022

शज़र पीला, हुआ है क्या



नदी काली, जमीं नीली, शज़र पीला, हुआ है क्या

बिना रोए कभी तकिया कहो गीला हुआ है क्या


हमारी आँख में आँसू की जगह खून दिखता है

बताओ हादसा जीवन में कुछ ऐसा हुआ है क्या?? 


किशन ने खुद ही अपनी बाँसुरी राधा को दे दी है

किसी की बात का उन पर असर इतना हुआ है क्या?? 


लुटा बैठा है खुद ही लूटने वाला अजब ही है

ज़माने का चलन फिर आज कल उल्टा हुआ है क्या?? 


नदी ने आज पूछा है समन्दर से न जाने क्यों

मिलन भर से,ज़रा सा ही, वो कुछ मीठा हुआ है क्या?? 


रखा माँ बाप ने औलाद का जब नाम दीपक तो, 

उजाला घर के आँगन में कहो ज़्यादा हुआ है क्या?? 


तमन्ना रोज़ बढ़ती है मेरी नज़दीक आने की

जिसे सब इश्क़ कहते हैं, मुझे वैसा हुआ है क्या?? 


यकीनन इल्म है उसको कि बस अब रुख़्सती ही है

इसी वजह से उसके दिल में एक धड़का हुआ है क्या?? 


स्वधा को फ़िर किसी ने राधिका कह कर पुकारा है

बड़े अचरज में है कलयुग में फ़िर कान्हा हुआ है क्या?? 

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