मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

रविवार, 14 अगस्त 2022

एक मुक्तक

 बस यूं ही


उड़ने को हैं पंख मगर, पिंजरे से इश्क़ लगाया है

हमने तो मन के भीतर ही, इक संसार बसाया है

खुद में ही हम गुम रहते हैं , खुद से बातें करते हैं

खुद की ख़ातिर खुद से खुद को हमने रोज़ मिलाया है।



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