मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

एक मुक्तक



अब नहीं कुछ भी कहना मुझे, मौन ही मुझको भाने लगा है, 

एक अनहद  सुरीला सा स्वर मेरे मन को सजाने लगा है, 

तृप्त अब है हर इक कोशिका, कोई तृष्णा नहीं शेष है, 

जब से उसने छुआ है मुझे, मन ये बंसी बजाने लगा है।। 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी अनमोल प्रतिक्रियाएं