Hindi poetry and Hindi sahitya Hindi Literature
अब नहीं कुछ भी कहना मुझे, मौन ही मुझको भाने लगा है,
एक अनहद सुरीला सा स्वर मेरे मन को सजाने लगा है,
तृप्त अब है हर इक कोशिका, कोई तृष्णा नहीं शेष है,
जब से उसने छुआ है मुझे, मन ये बंसी बजाने लगा है।।
आपकी अनमोल प्रतिक्रियाएं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी अनमोल प्रतिक्रियाएं