मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शनिवार, 6 अगस्त 2022

एक मुक्तक

 



शिराएं हैं सभी निष्प्राण, स्पंदन नहीं होता, 

विकल होता है मन लेकिन कभी क्रंदन नहीं होता, 

मैं जुड़ जाती हूँ लिख कर भाव के पर्याय सब उसको

मग़र वो दे सदा उत्तर, कभी बंधन नहीं होता।।। 



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