मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शनिवार, 13 अगस्त 2022

दोहे

 



ढक्कन के बिन जिस तरह, डिब्बे की औकात,

प्रेम बिना उस तरह है, साजन की सौगात।


ठगे नयन हैं देखते, पी चितवन की ओर

प्रतिबिंबित छवि हो रही, अलकों की है कोर।


करी फकीरी हृदय ने,नैन लिए सन्यास

हाँथ जपे माला निरत,, राम मिले अनयास।


ड्योढ़ी लांघी तो लगा, जाऊंगी किस ओर

थामी पी की आस में, राम नाम की डोर।


अंजुरि में भर खड़ी हूँ, मैं बरसों की प्यास,

पी मस्तक को चूम लें, यही एक बस आस।


गीता पढ़ कर क्या हुआ, जब बदले नहिं भाव

आ जाता है आज भी, बात बात पर ताव।


टूटी खटिया फटा बिछौना  ओढ़नी तरामतार

अधरों पर मुस्कान उस तरह ज्यों वन में श्री राम।


मैं बैरागन हो गयी,तज सारे  अरमान,

ना अपयश से दुख मुझे , न यश का अभिमान।


भीगे नैना बोलते,भीगी भीगी बात,

बिटिया पिंजरा है भला, बाहर हैं आघात।

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