मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

सोमवार, 1 अगस्त 2022

बिरहन रो रही है



मुसलसल तेज बारिश हो रही थी, 

कहीं पर कोई बिरहन रो रही थी.. 


पिया को ढूँढने की चाह में नित

वो पगली ख़ुद को ख़ुद ही खो रही थी.. 


जिसे मारा था उसके हमनशीं ने

वो अपनी लाश ख़ुद ही ढो रही थी.... 


जिसे तुम पूछते हो क्या हुआ था

वो चोरी के समय पर सो रही थी.... 


बचाने के लिए अपनों का दामन

स्वधा फ़िर दाग़ उनके धो रही थी... 


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