मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शनिवार, 30 जुलाई 2022

किस दिशा में आज जाऊँ.......


सब नसें अब कट गयीं हैं

रक्त बाहर आ रहा है

प्राण मेरा किंतु अब तक बस तुम्हीं को गा रहा है

तुम बताओ किस तरह प्रिय आज मैं विश्राम पाऊँ

किस दिशा में आज जाऊँ....... 


इस कदर टूटन बढ़ी मैं ना स्वयं को रोक पाई

धार पर अपनी कलाई दे तुम्हारे लोक आई

अब नहीं है जिस्म बंधन, अब कभी भी मिल सकेंगे

अब तुम्हारे घाव सारे संग रह कर सिल सकेंगे

अब बताओ दायें बैठूँ या तुम्हारे बाएँ जाऊँ

तुम बताओ किस तरह प्रिय आज मैं विश्राम पाऊँ

किस दिशा में आज जाऊँ....... 


थी करी विनती बहुत, तुम साथ मेरा छोड़ना मत

जो ज़रा सा शेष है तुम वो भरोसा तोड़ना मत

किंतु तुमने प्रश्नवाचक चिन्ह हिस्से में दिये थे

प्रेम के बदले दुखद एहसास के किस्से दिये थे

सब किया तुम पर समर्पित अब कहो क्या और लाऊँ

तुम बताओ किस तरह प्रिय आज मैं विश्राम पाऊँ

किस दिशा में आज जाऊँ....... 


मैं नहीं हूँ जानती क्या पाप है क्या पुन्य होगा

ईश वाली उस बही में तुम मिले या शून्य होगा

किंतु इतना जानती हूँ मृत्यु सब कुछ शांत करती

घाव कैसे भी लगे हों, एक पल में कष्ट हरती

आओ हाथों में घड़ा ले और पहने तुम खड़ाऊँ

तुम बताओ किस तरह प्रिय आज मैं विश्राम पाऊँ

किस दिशा में आज जाऊँ....... 


मुक्त हो तुम अब तुम्हें कोई सताने आयेगा ना

याद की सांकल बजा कर अब कोई मुस्कायेगा ना

अब शिकायत को लिखे वो पत्र तुमको ना मिलेंगे

अब तुम्हारे और मेरे घर में सन्नाटे मिलेंगे

तुम चले जाना किसी शिवधाम गर मैं याद आऊँ 

तुम बताओ किस तरह प्रिय आज मैं विश्राम पाऊँ

किस दिशा में आज जाऊँ....... 





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