देहरी पर बैठ करके बात करते
एक बुड्ढा एक बुढ़िया......
याद करते वो प्रथम पल
जब नयन अपलक मिले थे
मौन में भीगे हुए हमको
सुलगते तुम मिले थे
नीड़ के निर्माण की संकल्पना
के उस चरण पर
साथ आने के लिए
व्याकुल हुए थे
एक चिड्डा एक चिड़िया
देहरी पर बैठ करके बात करते
एक बुड्ढा एक बुढ़िया.....
चल पड़ी थी रेल जीवन की
बड़ी ही तीव्र गति से
थी कभी खुशियाँ कभी
रोयी थी आँखे दुर्गति से
जानते थे काल गति है
बीतना हर एक समय है
बस यही एक भाव लेकर
हाथ थामे बढ़ रहे थे
एक गुड्डा एक गुड़िया
देहरी पर बैठ करके बात करते
एक बुड्ढा एक बुढ़िया.....
आँख में अपनी समेटे
स्वप्न अपनों की खुशी के
कर रहे हैं आज वे इतिहास
की यात्रा पुनः फ़िर
देखते है आँख भर कर
एक दूजे को कभी वे
और कभी गिनते हैं
मुस्का कर उभर जो आई झुर्रियाँ
देहरी पर बैठ करके बात करते
एक बुड्ढा एक बुढ़िया.....

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