पढ़ कर मेरे लिखे संदेशे
मुस्का कर वो सोच रहा था
कितनी बेग़ैरत लड़की है
बार बार वापस आती है....
प्रश्न बहुत करती है लेकिन उत्तर शून्य सदा से मेरा
बता दिया है उसको मैने उसने जबरन मुझको घेरा
फ़िर भी मेरे हित की ख़ातिर जाने क्यों मंदिर जाती है
कितनी बेग़ैरत लड़की है
बार बार वापस आती है....
अपशब्दों के बाण चला कर कितनी बार उसे मारा है
उससे यही कहा भावों का गंगाजल तेरे खारा है
फ़िर भी बुरे स्वप्न देखे तो मेरी ख़ातिर घबराती है
कितनी बेग़ैरत लड़की है
बार बार वापस आती है....
मेरे अपनों को अपने आँचल की छाया में रखती है
मेरी ख़ातिर सब कुछ करती, कभी कहीं ना वो थकती है
फ़िर भी मेरे आरोपों को वो सीने से चिपकाती है
कितनी बेग़ैरत लड़की है
बार बार वापस आती है....
उसे नहीं मालूम कि जिस दिन ना लौटी उस दिन क्या होगा
भीगी पलकें, रोती आँखें, खाली रातें क्या क्या होगा
यही सोच कर रोज़ मुझे वो कोरी चिट्ठी लिख जाती है
कितनी बेग़ैरत लड़की है
बार बार वापस आती है....

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