मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

सोमवार, 4 जुलाई 2022

हरसिंगार


 


नहीं चाहिए गुलदानों को क्रय कर लाये पुष्प तुम्हारे

यदि प्रसन्न करना हो हमको, हरसिंगार तुम चुन कर लाना

मेरे आस पास ही रहना

ज्यादा दूर नहीं तुम जाना। 


इच्छायें सीमित है इतनी, दो वस्त्रों में जी सकते हैं

सुधा कलश की चाह नहीं है, तुम संग जल पी जी सकते हैं

साथ तुम्हारे चलना हो तो, शूल भरे पथ भी अपने हैं

स्वप्न तुम्हारे साथ जिये जो केवल स्वप्न वही अपने हैं

जेवर गहना नहीं चाहिए, साथ स्वयं का बुन कर लाना


मेरे आस पास ही रहना

ज्यादा दूर नहीं तुम जाना। 


रेशम वाली आस नहीं है हम कपास को अपना कहते

कनक धातु भर लगता हमको, हम पुष्पों की माला गहते

मोती माणिक हीरा पन्ना सब बेमोल तुम्हारे आगे

तुम आशीष ईश का हम पर जिससे भाग हमारे जागे

मेरी ख़ातिर भावनाओं के गजरे माला गुन कर लाना


मेरे आस पास ही रहना

ज्यादा दूर नहीं तुम जाना। 


प्राण वायु सम मेरे जीवन का निर्धारण तुम करते हो

मन के खाली घट को मेरे अपनेपन से तुम भरते हो

जीवन का शृंगार तुम्हीं हो, तुमको पा कर हम जीते हैं

बिन तेरे मेरे जीवन की व्यस्ताओं के पल रीते हैं

अपने मन के गीत प्रिये तुम मेरी ख़ातिर सुन कर लाना


मेरे आस पास ही रहना

ज्यादा दूर नहीं तुम जाना। 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी अनमोल प्रतिक्रियाएं