मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

रविवार, 17 जुलाई 2022

सारे साहूकार



लिए बही खाता हाथों में बैठे हैं तैयार

सारे साहूकार


मंडी की तो रीत यही है

सबको सबकुछ मिलता

जिसकी जितनी अधिक ज़रूरत

वो है उतना छिलता

किसको कम किसको ज्यादा अब देना है उधार

सोच रहे हैं नाक पे धर कर ऐनक बारंबार

सारे साहूकार........... 


लाभ हानि का गणित भिड़ाते

इनका जीवन बीता

पुण्य कर्म का घड़ा मगर

अंतिम पथ पर था रीता

दुःखी हृदय को दुःख की पूंजीबांटी है हर बार

सोच रहे हैं स्वांसें गिनते काश लुटाते प्यार

सारे साहूकार...........


जो बोया वो काटेंगे सब

अंत समय यह तय है

इसी बात का साहूकारों के 

मन में अब भय है

रामलाल का खेत और रधिया का मंगलहार

उन्हें दिलाएंगे जीवन के रण में केवल हार


लिए बही खाता हाथों में बैठे हैं तैयार

सारे साहूकार।।। 







स्वधा रवींद्र उत्कर्षिता



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