लिए बही खाता हाथों में बैठे हैं तैयार
सारे साहूकार
मंडी की तो रीत यही है
सबको सबकुछ मिलता
जिसकी जितनी अधिक ज़रूरत
वो है उतना छिलता
किसको कम किसको ज्यादा अब देना है उधार
सोच रहे हैं नाक पे धर कर ऐनक बारंबार
सारे साहूकार...........
लाभ हानि का गणित भिड़ाते
इनका जीवन बीता
पुण्य कर्म का घड़ा मगर
अंतिम पथ पर था रीता
दुःखी हृदय को दुःख की पूंजीबांटी है हर बार
सोच रहे हैं स्वांसें गिनते काश लुटाते प्यार
सारे साहूकार...........
जो बोया वो काटेंगे सब
अंत समय यह तय है
इसी बात का साहूकारों के
मन में अब भय है
रामलाल का खेत और रधिया का मंगलहार
उन्हें दिलाएंगे जीवन के रण में केवल हार
लिए बही खाता हाथों में बैठे हैं तैयार
सारे साहूकार।।।
स्वधा रवींद्र उत्कर्षिता

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