लल्ला सो रहा है......
कार्य में रत है निरंतर
किंतु सीने से लगाए
गुनगुनाती जा रही है
वो हृदय की वेदनायें
लोरियों के बंध में वो
यह निरंतर गा रही है
सब रहो अब मौन
लल्ला ख्वाब अंकुर बो रहा है
सब रहो अब मौन
लल्ला सो रहा है......
एक माँ ही है सभी दायित्व
जो पूरे करे हैं
प्रेम वाली भावना से
जो जगत भर को भरे है
स्नेह का परिमाप अपना
योजनों से भी बड़ा कर
कह रही सब चुप रहो
देखो ना लल्ला रो रहा है
सब रहो अब मौन
लल्ला सो रहा है......
देह की गर्मी से अपनी
नित्य उसको सेकती है
और कभी अनिमेष नयनों से
ललन को देखती है
वो सभी कर्तव्य अपने
पूर्ण श्रद्धा से निभाती
बोलती है शांति धर लो
लाल आकुल हो रहा है
सब रहो अब मौन
लल्ला सो रहा है......

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