मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

बुधवार, 20 जुलाई 2022

 




क्या कभी भूखी अंतड़ियों में उठी 

उस कुलबुलाहट से, कहीं परिचय हुआ है

क्या कभी उस जेठ वाली दोपहर की

गर्मियों में तुम तपे हो ,

क्या कभी उसको छुआ है

क्या कभी बाटा लिबर्टी छोड़ कर 

तपती सड़क पर तुम चले हो

क्या कभी तुम एक रोटी के लिए

दिन भर गले हो

यदि नहीं ये सब किया तो किस तरह दुत्कारते हो


एक रोटी के लिए जो रात दिन मरता है

बोलो क्यों उसे फटकारते हो।


क्या कभी भी उन परिस्थितियों से 

जूझे हो बताओ

क्या कभी देखी है शाश्वत भूख से लड़ती 

तुम्हारी एक पीढ़ी, 

कह सुनाओ

क्या तुम्हें मालूम है 

इस हाल में वे किस तरह हैं

क्या मिला उनको अगर पूछूँ , 

तो क्या यह भी जिरह है

क्या तुम्हें मालूम है 

अधनंग चमड़ी पर पड़ी

उस गर्द के जमने की गाथा

क्या कभी देखा है तुमने फिक्र

चिंता से भरा वह एक माथा

फिक्र है इस बात की

कि दिन तो बीता, 

रात में गुड़िया कहाँ पर सोयेगी

एक रोटी में उसे कितना मैं दे दूं , 

जिससे वो न रोयेगी

चार रुपयों में कहां से 

आएगी माँ की दवाई

और कैसे क्रीम लूंगा 

जिससे भरनी है बिवाई

लाडले ने कल कहा था 

मैथ की कॉपी खत्म है

कैसे उस बिन पढ़ सकेगा 

उसको केवल एक गम है

फिक्र की उन सीढ़ियों पर चढ़ रहा था

रोज जीता था मगर वो मर रहा था

क्या तुम्हें मालूम है ये , 

किस तरह तुम शब्द भेदी मारते हो


एक रोटी के लिए जो रात दिन मरता है

बोलो क्यों उसे फटकारते हो।


सोचते हो तुम कभी 

हर रात कैसे ये खुशी से झूमता है

पूरा दिन जो चिलचिलाती धूप में

चमड़ी जलाता, ईंट ढोता घूमता है

काम से थक हार कर

जो द्वंद खुद से कर रहा हैं

भाग्य रेखा पर उभर आई दरारें 

आज तक जो भर रहा हैं

क्या तुम्हें मालूम है ये

वह कभी चुनता न यह पथ

गर न स्थितियों ने काटे 

होते उसके स्वप्न के रथ

गर अकेले बैठ रख कर हाथ 

उसके हाथ पर पूछोगे उससे

वह नहीं बोलेगा उसकी छलछलाती

आँख तब पूछेगी तुमसे

क्या तुम्हें मालूम है ये किस तरह 

अवहेलना के बाण उसको मारते हो


एक रोटी के लिए जो रात दिन मरता है

बोलो क्यों उसे फटकारते हो।


हो अगर मानव तो मानव धर्म समझो

कर्म छोटा न बड़ा यह मर्म समझो

बांटना होता तो ईश्वर बाँट देता

तुमको नीला उसको पीला रक्त देता

एक के हिस्से सकल सुख आये होते

एक के हिस्से में होती वेदनायें

पर ज़रा सोचो ख़ुदा ने इस तरह के

भेद करते नियम क्या हैं बनाए

उसने मोती, भाव वाले हर हृदय में हैं संजोये

फिर भला तू सीपियों को देख 

क्यों मन को डुबोये

यदि मनुज का धर्म तुमको है पता तो

क्यों नहीं एक दूसरे को तारते हो


एक रोटी के लिए जो रात दिन मरता है

बोलो क्यों उसे फटकारते हो।




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