मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

गुरुवार, 21 जुलाई 2022

बड़ी बहू



दोनों पैरों में पहने है

वो अपने पाजेब

बड़ी बहू सर पर धारे है

घर भर के आसेब......... 


चूल्हा चौका झाड़ू पोछा

सब उठ कर निपटाती

सबके उठने से पहले

पानी भी वो भर लाती

फ़िर भी ख़ुश ना सास हुई

और ना खुश हैं साहेब


बड़ी बहू सर पर धारे है

घर भर के आसेब.........


उत्सव में सबसे पहले 

सबको करती तैयार

ननदी को दे देती अपना 

सोने वाला हार

फ़िर भी सब ही मुँह बिचकाते

पहने देख करेब


बड़ी बहू सर पर धारे है

घर भर के आसेब.........


चक्र व्यूह घर के भीतर

घर वाले नया बनाते

नई परीक्षाएं धर देते

कितने खेल खिलाते

इस घर की वो नहीं

सोच कर करते संग फरेब


बड़ी बहू सर पर धारे है

घर भर के आसेब.........


नियति अभी तक ना बदली है

बाबा की गुड़िया की

दुःख की ढपली बजा रही है

जो सुख की पुड़िया थी

हँसी ख़ुशी छन कर निकली

थी फ़टी हुई हर जेब


बड़ी बहू सर पर धारे है

घर भर के आसेब.........


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी अनमोल प्रतिक्रियाएं