दोनों पैरों में पहने है
वो अपने पाजेब
बड़ी बहू सर पर धारे है
घर भर के आसेब.........
चूल्हा चौका झाड़ू पोछा
सब उठ कर निपटाती
सबके उठने से पहले
पानी भी वो भर लाती
फ़िर भी ख़ुश ना सास हुई
और ना खुश हैं साहेब
बड़ी बहू सर पर धारे है
घर भर के आसेब.........
उत्सव में सबसे पहले
सबको करती तैयार
ननदी को दे देती अपना
सोने वाला हार
फ़िर भी सब ही मुँह बिचकाते
पहने देख करेब
बड़ी बहू सर पर धारे है
घर भर के आसेब.........
चक्र व्यूह घर के भीतर
घर वाले नया बनाते
नई परीक्षाएं धर देते
कितने खेल खिलाते
इस घर की वो नहीं
सोच कर करते संग फरेब
बड़ी बहू सर पर धारे है
घर भर के आसेब.........
नियति अभी तक ना बदली है
बाबा की गुड़िया की
दुःख की ढपली बजा रही है
जो सुख की पुड़िया थी
हँसी ख़ुशी छन कर निकली
थी फ़टी हुई हर जेब
बड़ी बहू सर पर धारे है
घर भर के आसेब.........

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