अब ना पकड़ना हाथ हमारा मोहन हमको जाने देना
रोकने का तुम यत्न ना करना, कह मुकरी सुलझाने देना
संग तुम्हारे नहीं हैं जो स्वाँसें तो स्वांसों को कान्हा मिटाने देना
तोड़ के पिंजरा प्रेम का कृष्ण हमें तुम खुद को भुलाने देना..........
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सामने काहे को आय के कान्हा नैनन को भरमाये रहे हो
पाती पियार की लिख लिख भेज के काहे हमें उलझाए रहे हो
काहे बजाए के बंसी हमें ओ नटवर इतना सताए रहे हो
दूर गए हो तो जाओ पिया तुम काहे हृदय में समाए रहे हो....
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पैर पे पैर चढ़ाये के कान्हा, लग के दीवार के साथ खड़े हैं,
हाथ में मुंदरी तन पीतांबर मोर मुकुट गल माल पड़े हैं
बाँसुरी अपनी दिखाये दिखाये कन्हैया ना जाने काहे अड़े हैं
राधा दीवानी ना देख सके कुछ प्रेम रतन अँखियों में जड़े हैं
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