मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

देवरानी जेठानी




कभी ज़रा छोटी होती है कभी बड़ी सी बात

देवरानी जेठानी में तो ठनती दिन और रात...... 


दोनों चक्की के पाटों सी 

सारा दिन हैं चलतीं

रहे व्यवस्थित सब कुछ घर में 

इस ख़ातिर हैं गलतीं

बर्तन जैसी बज जाती जब पड़ता है आघात

देवरानी जेठानी में तो ठनती दिन और रात...... 


मयके आई ननदी के

सुलटाएं सभी झमेले

अम्मा के कड़वे तानों को

मुस्का करके झेलें

लेकिन विषम परिस्थिति मे भी, करती न प्रतिघात

देवरानी जेठानी में तो ठनती दिन और रात...... 


दोनों दो अँखियों के जैसी

एक ओर ही जाएँ

भले लड़ाई कितनी भी हो

संग खेलें मुस्काएं

आख़िर दोनों ने झेले है एक जैसे ही घात

देवरानी जेठानी में तो ठनती दिन और रात......


बड़ा अजब सा रिश्ता है ये

बड़ा अनोखा चित्र

दोनों एक दूजे की दुश्मन

दोनों पक्की मित्र

एक दूजे की समझें दोनों बिन बोले हर बात

देवरानी जेठानी में तो ठनती दिन और रात......




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