Hindi poetry and Hindi sahitya Hindi Literature
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जिनके बग़ैर जीने की हसरत कभी न थी
उनके बग़ैर दोस्त जिये जा रहा हूँ मैं
इतना गिरा दिया मुझे मेरे मयार से
अब खुद को भी पहचान नहीं पा रहा हूँ मैं...
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