जो मन में आ गया वही करते रहे हैं हम
बस इसलिए जहान को खलते रहे हैं हम।।
जिनको नहीं था मेरी लगावट का मोल कुछ
उनके लिए ही आग में जलते रहे हैं हम।।
मंज़िल का कुछ पता था न रस्तों की थी ख़बर
जिस ओर वो दिखे वहीं चलते रहे हैं हम।।
गिरगिट का डर नहीं है न सांपों का खौफ़ है
बस कुछ सफ़ेद पोशों से डरते रहे हैं हम।।
सागर मथा गया तभी अमृत पिये सभी
बस विष से अपने आप को भरते रहे हैं हम।।
तुमने भी अपनी हमपे उठाई है उंगलियां
फ़िर उसके बाद ख़ुद से भी डरते रहे हैं हम।।
संदीपनी के कहने पे कान्हा चले गए
दीवानगी में राधा से, मरते रहे हैं हम।।
स्वधा कहा तुम्ही ने चलो सीधी राहपर
बस इसलिए ही प्यादों पे मरते रहे हैं हम।।

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