मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

चाय की टपरी


 

सूर्य के संग उग रही है

चाय की टपरी.... 


कुल्हडों के संग दिखते 

बिस्कुटों के गाँव

और ऊपर छा रही है

फूस सर पर छाँव

चिप्स पापड़ टाफियों 

के संग में पपड़ी


सूर्य के संग उग रही है

चाय की टपरी..... 


कुछ कुमारों ने वहाँ 

मिलने की ठानी है

और बुजुर्गो के दिलों की 

राजधानी है

प्यार की बजती वहाँ पर

नित्य ही ढपरी


सूर्य के संग उग रही है

चाय की टपरी..... 


डिग्रियों ने जबकि अपना

मोल है खोया

चाय की इन टपरियों ने

ख़्वाब बोया है

एम बी ए ने चाय बेची

ये नहीं तफरी


सूर्य के संग उग रही है

चाय की टपरी..... 


दे रही है ज्ञान यह 

नव मार्ग गढ़ने का

है बताती फायदा 

बस ये ही पढ़ने का

ख़ुद के ख़ुद मालिक बनो

क्यों खोलना अंजुरी


सूर्य के संग उग रही है

चाय की टपरी..... 


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