मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

बुधवार, 27 जुलाई 2022

मेरे दायित्व

 



तुम संभाल लेना मेरे दायित्व 

अगर जाकर ना लौटूँ।


तुम पर है विश्वास मुझे उतना ही जितना खुद पर भी है

तुमसे जीवन के रहस्य सब कह दूं इसकी जल्दी सी है।

जाने किन राहों पर जीवन की संध्या दस्तक दे जाए

इसीलिए बस तुझपर प्रेम लुटा देने की जल्दी सी है

तुम संभाल लेना मेरा विश्वास अगर मैं इसको खो दूँ, 


तुम संभाल लेना मेरे कर्तव्य

अगर जाकर न लौटूँ।


जग तो जग है, वो ही देगा, जो उसके हिस्से आया है

सीधी राहें चलने वाला राही भला किसे भाया है

काँटे उसके रस्ते में हैं, जिसने सदा फूल ही बाँटे

जिसने जिता दिया दुनिया को, उसके हिस्से में सब घाटे

तुम संभाल लेना गर मन के आँगन में मैं कांटे बो दूँ


तुम संभाल लेना मेरा सर्वस्व

अगर जा कर ना लौटूँ।


हृदय व्यथित है, डरा हुआ है,ज़िंदा दिखता, मरा हुआ है

मेरी मुस्कानों के पीछे जाने क्या क्या छुपा हुआ है

तुझे आज आतंकित मन से अपने आज मिला देती हूँ

तुझको खोने के डर से मिटती हूँ रोज़, बता देती हूँ

तुम संभाल लेना मेरा भय, अगर कभी डर कर मैं रो दूँ


तुम संभाल लेना अकथित ये प्रेम

अगर जा कर ना लौटूँ।


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