Hindi poetry and Hindi sahitya Hindi Literature
मैं अपने स्वप्नों की नौका किसी और संग क्यों बाँधूं,
ख़ुद में ख़ुद को ढूँढ सकूँ मैं, इतना क्यों ना मैं जागूँ
ख़ुद में ही ब्रह्मांड देख लूँ, ख़ुद में ही चैतन्य दिखे
क्यों ना मैं सन्यासी बन जागृत होकर मन को साधूं....
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