मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

गुरुवार, 22 दिसंबर 2022

मकड़जाल है

 



फंसे हुए की क्या मजाल है

अरे बुरा हाल है

ये जीवन इक मकड़जाल है........


फंदों के बाज़ारवाद में 

जो भी फंसा निकल ना पाया, 

उलझा लेता है खुद में यह

इसकी अय्यारों सी माया

दिखने में तो सहज सरल है

पर भीतर से इंद्र जाल है

अरे बुरा हाल है

ये जीवन इक मकड़जाल है........


दिखने में नौलखे हार सा

किंतु घोंटता दम रहता है

सुख की नदिया से ज्यादा 

इसमें दुख का लावा बहता है

फिर भी सबको यही चाहिए

कैसा ये देखो कमाल है

अरे बुरा हाल है

ये जीवन इक मकड़जाल है........


लीलाधर ने लीला करके

अद्भुद ये संसार बनाया

बड़े और छोटे से छोटे

कण में अपना बिंब बसाया,

जिसको बाहर ढूंढ रहा तू

मन में वो तेरे, कृपाल है

अरे बुरा हाल है

ये जीवन इक मकड़जाल है.......

फंसे हुए की क्या मजाल है

अरे बुरा हाल है

ये जीवन इक मकड़जाल है........


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी अनमोल प्रतिक्रियाएं