मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

भाया वो पटवारी



बंदर ने केला मिलते ही नई गुलाटी मारी,

जिससे चिढ़ता था वो, उसको भाया वो पटवारी.......


चिल्ला चिल्ला कर खुद को सच्चा बतलाया करता

शेष नहीं सिद्धांत, यही इक, गाना गाया करता

राजभवन से एक निमंत्रण पत्र उसे क्या आया

उसके सर पर भी चढ़ बैठी सुन्दर ठगनी माया

जिसका प्रण था जग सुधार वो बन बैठा अभिचारी


बंदर ने केला मिलते ही नई गुलाटी मारी,

जिससे चिढ़ता था वो, उसको भाया वो पटवारी.......


अब बंदर पटवारी के संग, सब कुछ बांट रहा है

उसको दे कर उसका हिस्सा,अपना छांट रहा है

जैसी संगत वैसे ही गुण धर्म बदल जाते हैं

खरबूजे को देख सदा खरबूजे इतराते हैं

सोने में हो गई मिलावट, अब किसकी है बारी


बंदर ने केला मिलते ही नई गुलाटी मारी,

जिससे चिढ़ता था वो, उसको भाया वो पटवारी.......


भूख खत्म होते बानर ने नए राग हैं छेड़े

अब तो उसको भी भाते हैं रस्ते टेढ़े मेढे

सत्य प्रभावी था तब तक, तब तक सिद्धांत कड़े थे

जब तक बानर राज डाल से नीचे कहीं खड़े थे

बस कुनबे का एक निमंत्रण , बन बैठे व्यभिचारी


बंदर ने केला मिलते ही नई गुलाटी मारी,

जिससे चिढ़ता था वो, उसको भाया वो पटवारी.......


जो भी हैं मतलबपरस्त उनके अदभुद हैं रंग 

एक लिफ़ाफा चंद तालियां बदल रही सब ढंग

जिनसे मतलब उनके आगे बीन बजाते घूमें 

कल तक मल कहते थे जिनको, उनका माथा चूमे

अब तुम ही देखो इस जग का क्या होगा बनवारी......


बंदर ने केला मिलते ही नई गुलाटी मारी,

जिससे चिढ़ता था वो, उसको भाया वो पटवारी.......


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