रे मन नई दिशा में दौड़
पुराने सारे रस्ते छोड़..
काहे अब तक लेकर बैठा
है तू कष्ट पुराने
बढ़ा रहा है दुःख की गठरी
जाने और अजाने
नदिया की ही भांति राह के
पत्थर से मुंह मोड़
रे मन नई दिशा में दौड़
पुराने सारे रस्ते छोड़..........
युद्ध क्षेत्र में आया है तो
युद्ध तुझे करना है
मन को विकल नहीं करना
नित ऊर्जा से भरना है
चाहे कैसी स्थितियां हों
मत बनना रणछोड़
रे मन नई दिशा में दौड़
पुराने सारे रस्ते छोड़..........
नियति और प्रारब्ध सत्य पर
कर्म प्रधान रहा है
गीता में देवेश्वर ने यह
लाखों बार कहा है
कर्म मार्ग पर चल यदि तुझको
बनना है बेजोड़
रे मन नई दिशा में दौड़
पुराने सारे रस्ते छोड़..........

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