हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर कैसे गीत लिखूँ,
दम्भ द्वेष व्यभिचार के युग में कैसे प्रीत लिखूँ,
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर कैसे गीत लिखूँ।
रहा प्रतीक्षा रत मैं नित प्रति जिसकी राहों में,
सोचा था जीवन बीतेगा जिसकी बाहों में,
वो ही किसी और का हो तो कैसे मीत लिखूँ,
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर कैसे गीत लिखूँ।
जब अपने ही खड़े सामने हो लड़ने खातिर,
जब अपने अवरोध बन रहे हो बढ़ने खातिर,
तुम ही बोलो उन्हें दुखी कर कैसे जीत लिखूँ,
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर कैसे गीत लिखूँ
दम्भ द्वेष व्यभिचार के युग में कैसे प्रीत लिखूँ
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर कैसे गीत लिखूँ।
स्वधा रवींद्र "उत्कर्षिता"
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंmain chahoongi ek din aapka naam bhi dinkar aur nirala ki shreni mein aaye aur batchche aapi poems text books mein padhen.
जवाब देंहटाएंbehad khoobsurat ukera hai aapne jajbataon ko,
जवाब देंहटाएंprem, vedana, viarah, viyog aur jhanjhawaton ko...