मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शुक्रवार, 1 मई 2020

गीत: आंखों में मत आँसू लाओ






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ये अनंत यात्रा है , साक्षी बनों , देखते सब जाओ
पर अनुरोध तात तुमसे , आँखों मे आँसू मत लाओ।

ईश्वर ने दी हमें अमरता , केवल वस्त्र बदलना है
जब तक द्वैत खत्म ना होगा तब तक जग को चलना है
समझ हमारी रही अविकसित , अंश ढूँढते रहे सदा
मिलने निकल पड़ा है जीवन , सुख दुख दोनों यदा कदा

क्षणभंगुर शरीर की खातिर , तात न तुम अब कुम्हलाओ
ये अनंत यात्रा है , साक्षी बनों , देखते सब जाओ।

पंच तत्व मटकी भर कर के , यात्री यात्रा पर निकला
माया में अटका वो ऐसा जीवन पथ पर वो फिसला
भूल गया वो सत्य सभी, लेकर असत्य वो साथ चला
इस मारग पर जो भी निकला , कहाँ हुआ हित और भला

यह प्रपंच है दुनिया का, बस देख इसे तुम मुस्काओ
ये अनंत यात्रा है , साक्षी बनों , देखते सब जाओ।

गोमुख से निकली है गंगा, सागर तक जाना होगा
आदि अगर मिल गया उसे ,तो अंत स्वयं पाना होगा
पिंजरे में कब तक मैना सर पटकेगी चिल्लाएगी
छोड़ एक दिन दुनिया सारी वो असीम तक जाएगी

यात्राओं पे शोक करो मत , पढ़ गीता मन बहलाओ
ये अनंत यात्रा है , साक्षी बनों , देखते सब जाओ।


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