मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

मंगलवार, 11 अप्रैल 2023

सब अनूदित लग रहा है......




कह रहे हैं लोग कुछ मौलिक सुनाओ

और मुझको सब अनूदित लग रहा है......


भावनाओं के सभी अंकुर खिलेंगे एक जैसे

प्रेम को जो भी लिखेंगे वे लिखेंगे प्रेम जैसे

क्या कोई नव बीज कोई बाग में फिर बो सकेगा

यदि लिखूंगी कुछ नया तो क्या नया वह हो सकेगा,

लोग कहते हैं मैं अपनी मूल ध्वनि उनको सुनाऊं 

पर मुझे सब प्रतिध्वनित सा लग रहा है


कह रहे हैं लोग कुछ मौलिक सुनाओ

और मुझको सब अनूदित लग रहा है......


राम लिखूं काव्य में तो याद तुलसी आ रहे हैं

कृष्ण लिखूं तो हृदय में सूर, कान्हा गा रहे हैं

दर्शनों में यदि कभी भी गीत मेरे डूबते हैं

श्लोक गीता में लिखे जो वो हृदय में गूंजते हैं

लोग कहते वेद में जो मंत्र हैं वो हैं अजन्मे

पर मुझे यह अनपेक्षित लग रहा है


कह रहे हैं लोग कुछ मौलिक सुनाओ

और मुझको सब अनूदित लग रहा है......


बंद करके जब नयन , अंतस की आभा गह सकेंगे

सब स्वयं से है, स्वयं में हैं सदा यह कह सकेंगे

कुछ नहीं मौलिक सभी कुछ पूर्व में भी हो चुका है

ये समय है जो निरंतर चल रहा है , कब रुका है

लोग जिसको आज कहते हैं किसी प्राचीन क्षण का

एक अनुभव अग्रसारित लग रहा है


कह रहे हैं लोग कुछ मौलिक सुनाओ

और मुझको सब अनूदित लग रहा है......





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