मुझको अपना कहती है पर
सबको गले लगा लेती है
बड़ी गज़ब की लड़की है वो
सबसे प्रेम निभा लेती है............
सुबह प्रभाती गाते गाते , घर आंगन पर छा जाती है
अम्मा बाबा भाई, बहन , बच्चों के मन को भा जाती है
सबके सुख में मुस्काती है सबके दुःख में रो देती है
घर की खुशहाली की खातिर अक्सर खुद को खो देती है
किंतु पूछ लो, तुम कैसी हो, तो हर कष्ट छिपा लेती है
बड़ी गज़ब की लड़की है वो
सबसे प्रेम निभा लेती है............
मेरे मित्र नहीं अब मेरे , उसके देवर बन इतराते
भाभी आज बनाया है क्या पूछ पूछ कर खाने आते
घर की बाई से लेकर ऑफिस के चपरासी की मां है
जो मेरे बच्चों की खातिर दोस्त और भोली अम्मा है
खुद कितनी भी थकी भले हो, बच्चों को दुलरा लेती है
बड़ी गज़ब की लड़की है वो
सबसे प्रेम निभा लेती है............
अपने सब रहस्य लेकर सब उसके पास चले आते हैं
और जगत भर में जाने क्यों सब उसके ही गुण गाते हैं
मेरा भाई भाई है उसका, मेरी बहन बहन है उसकी
वो बिल्कुल वैसी है जैसे भारीपन में चाय की चुस्की
मेरे सुख दुःख दर्द और कमियां सारी अपना लेती है
बड़ी गज़ब की लड़की है वो
सबसे प्रेम निभा लेती है............
कभी नहीं मांगती स्वयं के हेतु मंदिरों में वह जाकर
खुश हो जाती मां की साड़ी, बाबा के जूते संभाल कर
मेरा सब कुछ अब उसका है, किंतु समर्पित वह रहती है
सबकी खातिर लड़ जाती है अपनी खातिर चुप रहती है
जाने किस मिट्टी की है वो पीड़ा में मुस्का लेती है
बड़ी गज़ब की लड़की है वो
सबसे प्रेम निभा लेती है............
सातों वचन निभाए उसने, बिना अपेक्षा मन में पाले
सुख में साथ चली मेरे और कष्टों में थी मुझे संभाले
आंगन गलियारा रसोई सब अपने रंग में रंग डाले हैं
भले काम में रत हो किंतु मिलन के स्वप्न नयन पाले है
सोता देख मुझे थक कर वो, सारे दीप बुझा लेती है
बड़ी गज़ब की लड़की है वो
सबसे प्रेम निभा लेती है............

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