पूरा पूरा विटप खा गईं,
उन पर चढ़ी अमर बेलें।।
परजीवी संस्कृतियों ने ही
जीवन का संहार किया
जिस थाली में जा कर बैठीं
उसमें छेद हज़ार किया
अपना कह कर भावनाओं से
अक्सर ही अपने खेलें
पूरा पूरा विटप खा गईं,
उन पर चढ़ी अमर बेलें।।
जिसने सदा संभाला सब कुछ
उस पर ही आरोप लगे
जिसने खुला कपाट रखा
वे सज्जन ही फिर गए ठगे
जो मानवता को अपनाते
वो ही मानव को झेलें
पूरा पूरा विटप खा गईं,
उन पर चढ़ी अमर बेलें।।
जब भी अपने आंगन में
कोई नव बेल लगानी हो
देख लीजिए इतना उसकी
आंखों में भी पानी हो
वरना नव आगंतुक देते
कष्टों के शाश्वत मेले
पूरा पूरा विटप खा गईं,
उन पर चढ़ी अमर बेलें।।

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