मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

शुक्रवार, 23 जून 2023

मेरे पास नहीं आए हो



प्रेम बढ़ाने की खातिर मैं

जतन सभी कर आई थी पर

सोच रहीं हूं क्यों अब तक तुम मेरे पास नहीं आए हो।।


याद तुम्हें होगा पत्रों में 

कितने भाव किए थे प्रेषित

आंखों में आंसू थे लेकिन 

मुस्कानों से थे आश्लेषित

बहुत कठिन था सत्य समझना, 

क्यों हमको इतना भाए हो


सोच रहीं हूं क्यों अब तक तुम मेरे पास नहीं आए हो।।


प्रेम बढ़ेगा जूठा खाकर

दादी से सुन कर जाना था

तेरी थाली से एक कौरा 

इसीलिए मुझको खाना था

एक कौर का असर अभी तक 

तुम मेरे मन पर छाए हो


सोच रहीं हूं क्यों अब तक तुम मेरे पास नहीं आए हो।।


एक तुम्हें पाने की खातिर

मंदिर मस्ज़िद माथा टेका

गुरुद्वारे में सबद सुन लिए

मन मयूर भी कितना केका

किंतु मेरे उपवासों का फल 

तुम अब तक क्यों नहीं लाए हो


सोच रहीं हूं क्यों अब तक तुम मेरे पास नहीं आए हो।।


भूल गई थी केवल मैने

पत्रों में मनुहार किया था

जूठा भी मैने खाया था

मैने ही बस प्यार किया था

तुम तो इन राहों पर बढ़ने में 

हर दम ही अलसाए हो


सोच रहीं हूं क्यों अब तक तुम मेरे पास नहीं आए हो।



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