प्रेम बढ़ाने की खातिर मैं
जतन सभी कर आई थी पर
सोच रहीं हूं क्यों अब तक तुम मेरे पास नहीं आए हो।।
याद तुम्हें होगा पत्रों में
कितने भाव किए थे प्रेषित
आंखों में आंसू थे लेकिन
मुस्कानों से थे आश्लेषित
बहुत कठिन था सत्य समझना,
क्यों हमको इतना भाए हो
सोच रहीं हूं क्यों अब तक तुम मेरे पास नहीं आए हो।।
प्रेम बढ़ेगा जूठा खाकर
दादी से सुन कर जाना था
तेरी थाली से एक कौरा
इसीलिए मुझको खाना था
एक कौर का असर अभी तक
तुम मेरे मन पर छाए हो
सोच रहीं हूं क्यों अब तक तुम मेरे पास नहीं आए हो।।
एक तुम्हें पाने की खातिर
मंदिर मस्ज़िद माथा टेका
गुरुद्वारे में सबद सुन लिए
मन मयूर भी कितना केका
किंतु मेरे उपवासों का फल
तुम अब तक क्यों नहीं लाए हो
सोच रहीं हूं क्यों अब तक तुम मेरे पास नहीं आए हो।।
भूल गई थी केवल मैने
पत्रों में मनुहार किया था
जूठा भी मैने खाया था
मैने ही बस प्यार किया था
तुम तो इन राहों पर बढ़ने में
हर दम ही अलसाए हो
सोच रहीं हूं क्यों अब तक तुम मेरे पास नहीं आए हो।

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