मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

गुरुवार, 29 जून 2023

निर्बांध चलना चाहती हूं.


तुम चलो धारा में 

मैं निर्बांध चलना चाहती हूं.....


किस तरह बंधन भला स्वीकार लूं

तुम ही बताओ

रोक कर द्रुत लय मेरी तुम मत मुझे 

प्रियतम सताओ

तुम रहो स्थूल दृढ़ 

मैं किंतु गलना चाहती हूं


तुम चलो धारा में 

मैं निर्बांध चलना चाहती हूं.....


क्या मिलेगा ठोस होकर

नित्य ही मैं सोचती हूं

अपने हिस्से के सितारे 

खुद उचक कर नोचती हूं

मैं प्रकृति की भांति नित नव 

रूप ढलना चाहती हूं


तुम चलो धारा में 

मैं निर्बांध चलना चाहती हूं.....


ऊसरों में बीज बोकर मैं उन्हें नित 

तक रही हूं

जलरहित आकाश है, फिर भी नहीं

मैं थक रही हूं

प्रेम का परिजात हूं मैं

सिर्फ फलना चाहती हूं


तुम चलो धारा में 

मैं निर्बांध चलना चाहती हूं.....

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