मैं नहीं कह सकती
कि
बुद्ध होना
आसान है या नहीं
पर मैं
ये ज़रूर
कह सकती हूँ
की स्त्री होना
अत्यंत कठिन है।
बुद्ध जो बचपन से
बस सुख जानते थे
समझते थे
और भोगते थे,
जिन्हें पीड़ा का
आभास नहीं था
उनके लिए
किसी और को
पीड़ा में देख,
उस पीड़ा को महसूस करना
कितना कठिन होगा
ये सिर्फ बुध्द समझ सकते थे
मैं नहीं कह सकती
की कितना आसान या कठिन था
उनके लिए
अपनी पत्नी और पुत्र का त्याग
हाँ मैं ये अवश्य कह सकती हूँ
यदि ये यशोधरा करती तो
बहुत यातनाएं सहती
बहुत लांछन लगाए जाते
बहुत तोहमतें लगती
और जाने कितनी
वेदनाओं से गुजरती
यशोधरा।
मैं ये नहीं कह सकती
की रात्रि के अंधेरे में
जब सत्य की खोज में निकले थे बुध्द
तो कितने अकेले थे
क्योंकि
मुझे लगता है
पुत्र मोह और पत्नी वियोग
का दर्द
तो उन्होंने भी महसूस किया ही होगा।
हम स्त्रियाँ समझ सकते हैं
एक यशोधरा का दर्द
जब वो यातनाएं सहती है
लांछन सहती है
प्रताड़ित होती है
समाज के द्वारा
क्योंकि कहते हैं ना
घायल की गति घायल जानता है।
पर हम
नहीं समझ पाते
उस बुद्ध का दर्द
जो मिला सब ,त्यागकर
निकल जाता है
जग कल्याण के हेतु।
मैं कह सकती हूँ
बहुत कठिन है स्त्री होना
पर मैं ये नहीं कह सकती
कि आसान है
बुद्ध हो जाना।

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