मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

बुधवार, 25 मार्च 2020

एकांतवास



मुझे नहीं मालूम 
तुम क्या कर रहे हो 
अपने इस एकांतवास में
पर मैने निकाल ली है
अपनी पुरानी किताबें
जो अधपढी और अधपकी
से रह गयी थी बरसों पहले 
मन और मस्तिष्क के आंगन में।
फिर से दोहरा रही हूँ
उनके अर्थ 
और जी रही हूँ उनका
एक एक पात्र 
अपने अंदर
कभी रश्मिरथी का कर्ण 
बन जाती
तो 
कभी मेघदूत का वो 
काला मेघ
और उड़ती फिरती 
कालिदास, तुलसी, मीरा और कबीर 
के साथ 
भक्ति के अनंत आकाश में।


मुझे नहीं मालूम 
तुम क्या कर रहे हो 
अपने इस एकांतवास में
पर मैने निकाल लिए हैं
अपने वो कुछ सूखे कुछ गीले रंग
कुछ ब्रश 
जिनके पीछे की लकड़ी
काटी थी मैने 
अपने ही दांतों से
ये सोचते हुए 
किन रंगों से रंगनी है 
कैनवास की ये दुनिया
जिसका ईश्वर कोई और नहीं 
मैं ही तो हूँ
कर सकती हूँ आकाश को हरा
धरती को नीला
पानी को लाल
और खून को बेरंगा और पारदर्शी
अपनी कल्पनाओं की इस दुनिया में


मुझे नहीं मालूम 
तुम क्या कर रहे हो 
अपने इस एकांतवास में
पर मैने निकाले हैं 
कुछ सूफी 
कुछ पुराने
कुछ नए गाने
कुछ गज़लें कुछ भजन 
और कुछ अनसुने तराने
जिनमें बंदगी है,
और ज़िंदगी भी
घूम रही हूँ लगा कर 
कान में ब्लू टूथ वाला ईयरपीस
और गुनगुना रहीं हूँ
कभी सुर में तो कभी
थोड़ा बेसुरा होकर
मुस्कुराते हुए, 
व्यस्त हूँ मैं अपने घर के 
कुछ सुरीलों को चिढ़ाने में।

मुझे नहीं मालूम 
तुम क्या कर रहे हो 
अपने इस एकांतवास में
पर मैने 
जाने कितने ही 
कामों को करते हुए 
बंद कर ली हैं आँखें
और ढूंढ रही हूँ खुद को
अपने ही अंदर
पढ़ी थी कुछ दिनों पूर्व 
यथार्थ गीता
पढ़ा था महाभारत कहीं और नहीं
हमारा शरीर है
सद्कर्मो का प्रेषक जीता है धर्म क्षेत्र
और दुष्कर्म ही 
जन्म देते हैं अपने अंदर
एक कुरुक्षेत्र
तुम स्वयं अर्जुन भी हो
और कृष्ण भी
अपनी प्रकृति का निर्धारण
तुम्ही कर सकते हो
बस यही सोच
रत हूँ
अपने अंदर बसे अर्जुन को
कृष्ण बनाने में

मुझे नहीं मालूम 
तुम क्या कर रहे हो 
अपने इस एकांतवास में
पर मैं जी रही हूँ 
एक एक पल
बिना डरे, बिना सोचे
कि कल क्या होगा
हम होंगे या नहीं, 
वो होगा या नहीं
मैं तो बस इतना जानती हूँ
हर बात के दो पहलू होते है
एक अच्छा और एक बुरा
बुरे पे ध्यान केंद्रित होना 
आसान है
पर मुझे आसान कब रास आया है
इसलिए कठिनतम जी रही हूँ,
देखते हुए 
अच्छा पहलू
इस विभीषिका का
और रत हूँ सबको ये समझाने में
जी लो
ये क्षण बहुत कीमती है
फिर मिले न मिलें
और लग गयी हूँ 
इस विषमता में भी 
अपने लिए एक नया 
भविष्य रचने में

मुझे नहीं मालूम 
तुम क्या कर रहे हो 
अपने इस एकांतवास में
पर मैं........










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