मम अंतर्नाद

मम अंतर्नाद
मेरा एकल ग़ज़ल संग्रह

गुरुवार, 21 मई 2020

गीत :मछलियों के पर निकल आये




मछलियों के पर निकल आये वो उड़ने लग गयीं
छोड़ कर अपना जलाशय नभ पे चढ़ने लग गयीं।

स्वांस लेने में कठिनता हो रही थी हर घड़ी
थाम हठ का हाथ लेकिन वो नए रस्ते बढ़ी
वो जगत की रीतियों से आज लड़ने लग गयीं

मछलियों के पर निकल आये वो उड़ने लग गयीं।

हर तरफ चीत्कार थी और हर तरफ एक द्वंद था
जिस तरफ बढ़ती थी रस्ता उस तरफ ही बंद था
तंज सह कर वो जगत के और कढ़ने लग गयीं

मछलियों के पर निकल आये वो उड़ने लग गयीं।

सब विरोधी हो गए थे, कोई भी ना साथ था
मुश्कियों के दौर थे ये, बस तिमिर ही हाथ था
बन के जुगनू वो मगर रातों को पढ़ने लग गयीं

मछलियों के पर निकल आये वो उड़ने लग गयीं।

दौड़ती वो जा रहीं थी सिर्फ नभ की आस में
चाँद बनना था उन्हें , ये बात थी बस पास में
चल अकेली राह पर प्रतिमान गढ़ने लग गयीं

मछलियों के पर निकल आये वो उड़ने लग गयीं।

आज हैं आकाश पर , ध्रुव बन चमकती है वहाँ
और धरती पर खड़े , स्तब्ध जन देखें वहाँ
बन गईं ध्रुव तो वो, सूरज ओर बढ़ने लगे गयीं

मछलियों के पर निकल आये वो उड़ने लग गयीं।
छोड़ कर अपना जलाशय नभ पे चढ़ने लग गयीं।





स्वधा रवींद्र "उत्कर्षिता"

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